बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्र : सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वणिकवाद के सिद्धान्त एवं नीतियाँ लिखिये।
उत्तर-
वणिकवाद एक प्राचीन कल्पना का परिणाम है, जैसे-जैसे देश में प्रगति का आधार बढ़ता गया वैसे-वैसे वणिकवाद का क्षेत्र एवं महत्व भी बढ़ता गया। 14 वीं, 15वीं, 16वीं शताब्दी में वणिकवाद मैं अभूत पूर्ण परिवर्तन देखने को मिले। ऐसे परिवर्तन यूरोप, फ्रांस, जर्मनी में अधिक देखने को मिलें। साधारण शब्दों में कहा जाये तो वणिकवाद के द्वारा ही आज का व्यापार एवं वाणिज्य प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके हैं, लेकिन इसके पीछे बहुत से सिद्धान्त एवं नीतियों का समय-समय पर प्रयोग किया गया। हम पहले इसके कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों एवं बाद में नीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
वणिकवाद के सिद्धान्त
वणिकवाद कुछ विशेष सिद्धान्तों पर आधारित हैं, जैसे यूरोपियन देशों में इसका प्रयोग पूँजीवाद के लिये एवं कुछ देशों जैसे- फ्रांस, जर्मनी, में वणिकवाद एक खुली अर्थव्यवस्था का द्योतक थी। इन देशों ने जिन-जिन सिद्धान्तों का प्रयोग वणिकवाद के लिये किया उनका वर्णन हम अग्रलिखित पंक्तियों में करेंगे -
(1) व्यापार का सिद्धान्त प्राचीन वणिकवादी यह मानकर व्यापार करते थे कि हमें ज्यादा से ज्यादा लाभ एवं कम से कम हानि हो जैसे कोई व्यापारी राजा की आज्ञा लेकर वणिकवाद का विस्तार करना चाहता है तो उसे कुछ-न-कुछ पूँजी कि आवश्यकता होगी, यह पूँजी वह स्वयं एवं अपने मित्रों, सगे सम्बन्धी एवं राज्य से ले सकता था लेकिन उसे उसका कुछ भाग राजा को कर के रूप में देना पड़ता था। इसी सिद्धान्त को हम व्यापार का सिद्धान्त या वाणिज्य का वणिकवाद सिद्धान्त के नाम से जानते हैं। यही सिद्धान्त आज बड़ी प्रतियोगिता एवं देश के विकास के लिये आधार बन गया है।
(2) ब्याज का सिद्धान्त - वणिकवाद एक आर्थिक क्रिया का ही परिणाम है, कोई भी नीति किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उपयोग में लायी जाती हैं। ब्याज का सिद्धान्त बहुत पुराना सिद्धान्त है, इसके अन्तर्गत बड़े-बड़े जमींदार, व्यापारी, सेठ साहूकार छोटे उद्यमियों को नकद के रूप में उधार पूँजी देते थे एवं उसके बदले में एक निश्चित दर से ब्याज लिया करते थे। ब्याज मासिक, छमाही, सालाना होती थी। ब्याज की दर अलग-अलग देशों में अलग-अलग हुआ करती थी। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि देश में पूँजी की मात्रा (मुद्रा की मात्रा) कम है तो ब्याज ऊँची दर पर लिया जाता था, एवं इसके विपरीत यदि मुद्रा की मात्रा देश के उद्यमियों की आवश्यकता के अनुसार ज्यादा होती थी, तो ब्याज की दर कम होती थी। यही सिद्धान्त आज के बैंकिंग, बीमा के रूप में प्रकट हो गया है।
(3) पूँजी की उत्पादकता का सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अनुसार पूँजी का सही एवं उत्पादक कार्यों के लिये पूँजी के विनियोग से सम्बन्धित हैं। पूँजी यदि सही उद्देश्य के लिये लगायी जाएगी तो लगाने वाला एवं देश दोनों को फायदा होगा, लेकिन यदि इसका सही प्रयोग नहीं हुआ तो इसका घातक परिणाम हो सकता है। प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार वणिकवादी अपनी पूँजी का अधिकांश भाग कृषि, व्यापार, आयात एवं निर्यात के कार्यों पर लगाते थे।
(4) जोखिम का सिद्धान्त - प्राचीन अर्थशास्त्री पहले ही यह बता चुके हैं, कि कोई भी व्यापार बिना जोखिम के फल-फूल नहीं सकता अर्थात् व्यापार के विकास के लिये जोखिम का होना आवश्यक है। यह सिद्धान्त हमें जोखिम से बचाने एवं उसका सही ढंग से सामना करना बताता हैं। यदि व्यापारी, उद्यमी, किसान एक सही रणनीति का प्रयोग करके व्यापार, कृषि आदि कार्यों को करते हैं तो जोखिम की संभावना कम हो जाती है, जब जोखिम की मात्रा कम होगी तो लाभ अनिवार्य रूप से बढ़ेगा। लाभ से ही हर प्रकार के जोखिम से बचा जा सकता है। जोखिम चूँकि व्यापार, वाणिज्य का एक आधारभूत तत्व है अर्थात इसको बिलकुल समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन अच्छी नीति एवं सुशासन के द्वारा इसका बढ़ी अच्छी तरीके से सामना किया जा सकता है।
(5) लाभ का सिद्धान्त - वणिकवाद अर्थशास्त्र में लाभ का बड़ा महत्व है, कोई भी आर्थिक क्रिया बिना लाभ के कल्पना मात्र है, प्राचीन अर्थशात्रियों के अनुसार 14वीं, 15वीं, 16वीं, 17 वीं शताब्दी में वणिकवाद के अन्तर्गत व्यक्तिगत लाभ को ज्यादा ध्यान दिया जाता था, लेकिन 18वीं " शताब्दी में इसमें बदलाव हुआ और वणिकवादियों ने लाभ के साथ-साथ उपयोगिता, संतुष्टि का भी ध्यान देना शुरू किया। सारांश रूप में लाभ लेना अनुचित नहीं है अपितु उसका तरीका राज्य, जनता, विरोधी न हो। अर्थात शोषक न हो।
वणिकवाद की नीतियाँ वणिकवाद राष्ट्रवाद के आने से पूर्व एक औद्योगिक क्रांति को जन्म दे चुकी थी क्योंकि मुद्रा का उदय, पुर्नजागरण, आर्थिक एवं राजनीतिक नीतियों का धार्मिक विचारधारा से पृथक होना, इसके महत्वपूर्ण कारण थे। हम वणिकवादियों द्वारा अपनायी गयी नीतियों को निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं
(a) वणिकवाद की आर्थिक नीति वणिकवादियों की आर्थिक नीति एक सोची समझी जागरुक नीति थी। देश के विकास एवं संसार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये उनके अनुसार आर्थिक गतिविधियों पर बहुत विचार करना आवश्यक है। यही कारण है कि 17वीं शताब्दी में इग्लैण्ड में आद्योगिक क्रांति का प्रार्दुभाव हो पाया। वणिकवादियों के अनुसार देश का सही विकास स्तंभ उसका आर्थिक नियोजन एवं उसका सही क्रियान्यवन हैं। शुरू में वणिकवादियों की आर्थिक नीति बहुत संकुचित थी पर बढ़ती जनसंख्या एवं जागरूकता ने इसकी आर्थिक नीति में भी परिवर्तन कर दिया।
(b) वणिकवाद की सामाजिक नीति -वणिकवादियों की सामाजिक नीति बहुत अच्छी नहीं थी पर समय के साथ-साथ इनकी सामाजिक सोच एवं विचार में भी वृद्धि हुई। यदि हम 14वीं, 15वीं शताब्दी का विश्लेषण करें एवं 16वीं, 17 वीं शताब्दी के सामाजिक परिवर्तन से तुलना करें तो काफी अन्तर दिखायी पड़ता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वणिकवादियों की व्यक्तिगत नीति का स्थान सामाजिक नीति ले रही थी।
(c) वणिकवाद की राजनैतिक नीति - वणिकवाद पूरी तरह से 14वीं, 15वीं 16वीं शताब्दी में राजा के अधीन राजनीतिक नीति का प्रयोग करते थे। वणिक पूरी तरह से राजा से स्वतंत्र नहीं थे अतः उनकी राजनीतिक नीति देश के राजा के अनुसार ही होती थी परन्तु बहुत वणिक अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग करके राजनैतिक नीति का प्रयोग अपने व्यापार की उन्नति के लिये करवा लेते थे।
(d) वणिकवाद की उद्देश्य नीति - वणिकवादियों का प्रमुख उद्देश्य उनके द्वारा स्थापित उद्योग-धन्धों का विकास करना एवं लाभ कमाना था। उद्योग का ज्यादा से ज्यादा विस्तार एवं निर्यात प्रोत्साहन ही उनकी सबसे बड़ी नीति थी।
(e) वणिकवाद की भविष्य एवं प्रतियोगिता की नीति प्रत्येक देश के वणिकवादी चाहते थे कि उनका व्यापार, वाणिज्य, निर्यात पूरे संसार में सबसे अधिक विकसित हो, इसलिये वणिक ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिता की वस्तुओं को ध्यान देकर अपने व्यापार एवं वाणिज्य को अग्रसर करते थे।
(f) वणिकवाद की परिवर्तन नीति वणिकवाद की परिवर्तन नीति समय की देन थी, जैसे मनुष्य विकसित होता है वैसे-वैसे उसकी आवश्यकता एवं इच्छा में वृद्धि होती है।
यही वृद्धि एक नये खोज एवं तकनीक का रूप धारण कर लेती है। वणिकवादियों की परिवर्तन नीति श्रेष्ठ थी क्योंकि 14वीं, 15वीं शताब्दी में उद्योग उतना विकसित नहीं था जितना कि 17वीं, 18वीं एवं आज है।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वणिकवादियों की नीति एवं सिद्धान्त दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, और हमारे आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन का आधार है।
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- प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- अर्थशास्त्र में उल्लिखित 'कृषि तथा पशुपालन' विषय पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- कौटिल्य के सार्वजनिक वित्त संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- सन्त थॉमस एक्विनास के श्रम विभाजन सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- नव-वणिकवाद के उदय के कारण क्या हैं? संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- "डेविड ह्यूम (David Hume) को मुद्रावाद का सूत्रधार कहा जाता है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- एडम स्मिथ की पुस्तक 'राष्ट्रों का धन' (Wealth of Nations) का तत्कालिक आर्थिक विचारधारा पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- एडम स्मिथ के आर्थिक विचारों के विकास में योगदानों का विवरण दीजिए तथा उनके, आर्थिक सिद्धान्तों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- एडम स्मिथ की व्यवस्था के अन्तर्गत " श्रम विभाजन" और "बाजार के विस्तार" की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'परम्परावाद' क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विचारों के इतिहास में स्मिथ के स्थान को चिन्हित कीजिए।
- प्रश्न- अहस्तक्षेप नीति क्या है?
- प्रश्न- स्मिथ के सिद्धान्तों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- स्मिथ का आशावाद क्या है?
- प्रश्न- एडम स्मिथ के पूँजी संचय सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वितरण सम्बन्धी एडम स्मिथ के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- एडम स्मिथ के व्यापार सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- एडम स्मिथ के आशावाद पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- स्मिथ के प्रकृतिवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- "रिकार्डों का मुख्य योगदान मूल्य सिद्धान्त तथा वितरण सिद्धान्त के क्षेत्र में है। " व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रिकार्डो के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिये जिनसे प्रकृतिवाद का जन्म हुआ। प्रकृतिवाद का आर्थिक विचारों में क्या योगदान है?
- प्रश्न- रिकार्डों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- डेविड रिकार्डों के 'मजदूरी सिद्धान्त' पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- रिकार्डों का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- रिकार्डों की प्रसिद्ध पुस्तक 'The Principles of Political Economy and Taxation' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के 'जनसंख्या सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए तथा इसकी आलोचनाओं को बताइए।
- प्रश्न- नव-माल्थसवाद क्या है? इसके प्रमुख आर्थिक विचारों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अति उत्पादन तथा लगान पर माल्थस के विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के 'लगान' सम्बन्धी विचार को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के 'प्रभावी माँग के सिद्धान्त' का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस और रिकार्डो को निराशावादी क्यों कहा जाता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के विचारों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या थे? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'मार्क्स अन्तर्राष्ट्रीय समाजवाद के पिता के रूप में था।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के 'अतिरेक मूल्य सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए तथा इसकी प्रमुख आलोचनाओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के आर्थिक विघटन सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "मार्क्सवाद परम्परावाद के तने पर उगी हुई शाखा मात्र है।" उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या कार्ल मार्क्स को प्रतिष्ठित सम्प्रदाय का अर्थशास्त्री माना जा सकता है? विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- सहयोगी समाजवाद, राज्य समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद की तुलना कीजिए और उनका अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित आधुनिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सिसमाण्डी के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "सिसमाण्डी समाजवादी विचारक था। " सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की विचारधारा के मूल तत्त्व कौन-कौन से थे?
- प्रश्न- मार्क्सवाद की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वर्ग संघर्ष पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के प्रमुख आर्थिक विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के आर्थिक विचारों पर प्रभाव डालने वाले मुख्य घटकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जे आर. हिक्स के विचारों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "मिल के द्वारा परम्परावादी अर्थशास्त्र पूर्ण रूप से विकसित किया गया और उसी के साथ उसका पतन प्रारम्भ हुआ।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल परम्परावादी सिद्धान्तों के किन-किन नियमों से सहमत तथा किन-किन नियमों से असहमत था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के स्वहित सिद्धान्त की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के स्वतन्त्रता प्रतियोगिता के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के जनसंख्या सिद्धांत की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिल के समाजवादी विचारों की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- 'जे. एस. मिल समाजवादी था'। इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के आर्थिक विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- जे. बी. से के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जे. एस. मिल के मजदूरी सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मिल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'मूल्य व वितरण' के क्षेत्र में मार्शल के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्पष्ट व्याख्या कीजिए कि नव-परम्परावाद क्या है? इस सन्दर्भ में मार्शल के आर्थिक सिद्धान्त के क्षेत्र में योगदान का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नव परम्परावाद क्या है? परम्परावादी एवं नव परम्परावादी विचारों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद को जन्म देने वाली शक्तियों की व्याख्या कीजिए तथा आर्थिक विचारधारा में उसका मुख्य योगदान बताइये।
- प्रश्न- मार्शल के निरंतरता सिद्धांत पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्शल के आभास लगान के संबंध में विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिनिधि फर्म के विषय में मार्शल के विचारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्शल ने अल्पकालीन व दीर्घकालीन विवाद के हल को कैसे सुलझाया?
- प्रश्न- परम्परावादी तथा नवपरम्परावादी विचारों में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- मार्शल के उपयोगितावाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शुद्ध उत्पत्ति का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- राबिन्स के विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पीगू के आर्थिक कल्याण सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- पीगू ने अर्थशास्त्र का क्षेत्र निर्धारण किस प्रकार किया है?
- प्रश्न- पीगू के रोजगार सम्बन्धी विचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पीगू के समाजवादी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शुम्पीटर के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सीमान्तवाद क्या है? सीमान्तवादियों का अर्थशास्त्र में क्या योगदान रहा है?
- प्रश्न- क्रूनो के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्धारण के सम्बन्ध में क्रूनो के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- गोसेन के आर्थिक विचारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जेवन्स के मूल्य सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रो. एल. वालरा (वालरस) के बाजार सन्तुलन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सिसमण्डी के आर्थिक विचारों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सीमान्तवादी क्रान्ति की व्याख्या कीजिए तथा इस सम्बन्ध में मेंजर के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जेवन्स के प्रमुख आर्थिक विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मेंजर के द्रव्य सम्बन्धी विचारों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- विकस्टीड के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वालरस के उपयोगिता सम्बन्धी विचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वालरस के साम्य सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मेंजर के आर्थिक विचारों पर प्रकाश डालिए
- प्रश्न- कार्ल मेंजर के विनिमय सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मेंजर के अनुसार वस्तुओं के वर्गीकरण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मेंजर के मुद्रा सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जेवेन्स के मूल्य सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जेवेन्स के आर्थिक विचारों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- यूजिन वॉन बाम बावर्क के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाम बावर्क के मूल्य सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नटविकसेल के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- इविंग फिशर के प्रमुख आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "मुद्रा प्रसार व संकुचन दोनों हानिकारक हैं।" इविंग फिशर के इस विचार का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- फिशर के मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।